Wednesday, July 24, 2013

Bheega sa sawan

सावन का आना भी कोई भुला पाता है ? 
हर साल की तरह इस साल भी आया है  
पर इस साल की बात कुछ अजीब है 
न जाने क्यों पिछले साल की सीलन 
इस साल भी दीवारों पर है 
कुछ पॊन्दोन से छलक्ति हुई 
भीगा सा एक अफसाना सुना जाती है 

सावन कुछ अलग सा है इस साल 
देखो तो लगता है कुछ आम सा 
पर अधूरा है येह… 
इस सावन में मुस्कराहट जो  नहीं है 
क्यूँ यह बदल वैसे नहीं बरसते ? 
क्यूँ यह  बूँदें ठंडी नहीं हैं ? 
क्यूँ न जाने कलियाँ नहीं मुस्कुराती ? 


थे तो तुम पिछले सावन में भी नहीं 
पर  ग़म तो था तुम्हारा ... कुछ अपना सा 
पर न जाने तुम्हरे ग़म को 
मिटाना इतना मुश्किल क्यों हैं 
सावन भी थक गया आसुओं को छुपाते का 
झूठी मूठी मुसकुराहटों बहाना 
भूल चूका है सावन भी भीग जाना

सीलन तो आज भी वैसी है 
उन गिलाफों में छिपे आसुओं की 
कोई न सुखा पाया न ही छुपा पाया 
सावन जो जा के फिर से आ गया 
पर ना आये तुम
पहले तुम्हारी याद तो आती थी 
अब बस सावन आता है… तुम्हारी याद नहीं 

Tuesday, July 9, 2013

Kahani, kuchh tumhari, kuchh meri, aur kuchh hum dono ki

कुछ वाक्ये लफ़्ज़ों से कम 
और ख़ामोशी से बहतर बायाँ होते हैं 
कुछ ऐसी ही बात थी हमारी तुम्हारी 
बेनाम सि… अनकही सि… 
कुछ पहचानी सी भी 

ज़रा दबी दबी सी आवाजों से भरी 
जैसे चोरी छुप्पे आम चुरन 
पर चुरा तो आखें ही रहे थे 
कुछ सन्नाटे में हिचकी जैसी
ज़रा सी धदक्ति…  ज़रा सी सुन्न… 
कुछ पहचानी सी भी

            अच्छा देखो… 
            क्या?
            अब यह भी बताना पड़ेगा ?
            ह्म्म्म… 
            तो मत देखो… 
            ले देख लिय… 
            क्या ?
            अब यह भी बताना पड़ेगा ?


बेमानी सी अटपटी बातें हम दोनों की 
कुछ नोक झोंक और हंसी मज़ाक 
कुछ लड़ना झगड़ना झूठा मूठा
कुछ आग़ाज़ सि… कुछ अंजाम सि… 
और ज़रा सी चुप चाप बैठी अकेले 
कच्छ पहचानी सी भी 


बस मीठी याद… हलकी मुस्कराहट 
थोड़ी सी बेवकूफी 
कुछ ठंडी ठंडी बर्क ते तरह 
और सांसों सी हलकी गर्म 
कुछ तुमहरि… कुछ मेरि… कुछ हम दोनों कि… 
और कुछ बदनाम सी भी 

क्या? अब भी नही समझे?
म्म हम्म 
कहनि…